Sunday, March 20, 2011

सुप्रिया रॉय
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 4 जून- भारत सरकार की नवरत्न कंपनी तेल और प्राकृतिक गैस निगम यानी ओएनजीसी ने एक नहीं, सोलह खतरनाक सौदे किए जिनसे देश को अरबों रुपए का घाटा हुआ। ओएनजीसी का बस चलता तो इन घोटालों को वह छुपाए ही रहती लेकिन सूचना के अधिकार के तहत केंद्रीय सूचना आयोग ने उसे सच बोलने पर बाध्य कर दिया। मगर ओएनजीसी की बेशर्मी यह है कि उसने जिन चौदह कंपनियों में अपना पैसा डुबाया था उनके नाम केंंद्रीय सूचना आयुक्त को भी बताने से इंकार कर दिया। जो जानकारी हमारे पास उपलब्ध है उसके अनुसार चार कंपनियां तो रिलायंस की है और उधार तब का भी है जब धीरूभाई अंबानी जिंदा थे। ब्याज मिला कर यह रकम अरबों रुपए तक पहुंच जाती हैं।

हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड - एचपीसीएल की तरह ही बगैर बैंक गारंटी या किसी भी तरह की गारंटी लिए जैसे एचपीसीएल ने मुरली देवड़ा के दोस्त विजय माल्या को धन्य किया था वैसे ही ओएनजीसी ने अंबानियों और दूसरी कंपनियों को धन्य किया।

यह घपले राजीव गांधी के जमाने से शुरू हुए थे और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार तक चलते रहे। बेशर्मी की हद यह है कि ओएनजीसी के तत्कालीन मुखिया रहे सुबीर राहा जब रिटायर हुए तब भी उन्होंने इन घपलों की जानकारी किसी को नहीं दी। अपनी कार्यभार सौंपने की रिपोर्ट में भी उन्होंने इसका कोई जिक्र नहीं किया। छुपाने की भी एक सीमा होती है मगर ओएनजीसी लगातार यह सीमा लांघता रहा है। ओएनजीसी के भूतपूर्व निदेशक मोहन रेड्डी ने कहा है कि जब हम अपनी गलती मान चुके हैं तो हमसे नाम बताने के लिए क्यों कहा जा रहा है? इससे तो पैसा वसूलने की हमारी सारी संभावनाएं ही खत्म हो जाएंगी।

ओएनजीसी भारत सरकार की ओर से भारत में निकलने वाले सभी प्राकृतिक तेल और गैस पदार्थों की मालिक हैं और इसी के आधार पर वह जिसको चाहे गैस आवंटित कर सकती है। मगर आवंटन के भी कुछ नियम होते हैं जिन्हें ओएनजीसी ने सरेआम और बहुत निर्लज्ज भाव से तोड़ा। वर्तमान पेट्रोलियम और रसायन मंत्री मुरली देवड़ा को अपने मित्रों पर उपकार करने से फुरसत मिले तो वे दूसरे विभागो में हो रहे घपलों के बारे में पता लगाएं।

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