--विजय माल्या के उधार की आंच में झुलसते देवड़ा
सुप्रिया रॉय
मुरली देवड़ा के कहने पर हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड- एचपीसीएल ने किंग फिशर एयर लाइन के विजय माल्या के साथ मिल कर जो बड़ा घपला किया था उसकी जांच अब खुद मुरली देवड़ा का मंत्रालय कर रहा हैं। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जांच का नतीजा क्या होगा?
...मामला यह है कि विजय माल्या की किंग फिशर को छह सौ दो करोड़ रुपए उधार देने की व्यवस्था कर दी गई। विजय माल्या पर पहले का भी उधार बाकी था मगर इस 30 जून तक उधार की सीमा अपने आप बढ़ा दी गई। इसके लिए नियमों के मुताबिक ढाई सौ करोड़ रुपए की बैंक और कॉरपोरेट गारंटी भी नहीं ली गई। दिलचस्प बात यह है कि एचपीसीएल का खुद का सालाना मुनाफा सिर्फ 571 करोड़ रुपए हैं।
विजय माल्या बड़े आदमी हैं। दुनिया भर मंे शराब के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक हैं लेकिन उनकी किंग फिशर अब तक अपना घाटा पूरा नहीं कर सकी और इसीलिए उन्होंने अपनी शराब कंपनी यूनाइटेड ब्रीवरीज एंड होल्डिंग की ओर से जमानत की चिट्ठी लिखवा कर छह सौ करोड़ का हवाई ईंधन उधार लेने की व्यवस्था कर ली।
इस संदिग्ध उधारी से परेशान एचपीसीएल के कई अधिकारियों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक आवाज उठाई और इसके बाद मार्च में एक विशेष बोर्ड बैठक में किसी भी एयर लाइन को उधार देने की सुविधा बंद कर दी गई। यह बैठक 30 मार्च को हुई थी मगर किंग फिशर से उधारी वसूलने का कोई पत्र भी जारी नहीं किया गया। मंत्रालय का कहना है कि इस विशेष बोर्ड बैठक मंे क्या फैसला हुआ यह हमे अब तक नहीं बताया गया है।
उधर एचपीसीएल के प्रवक्ता ने ही मुरली देवड़ा की पोल खोल दी थी। प्रवक्ता ने कहा था कि हम लोग पेट्रोलियम और प्राकृति गैस के निर्देशों का पालन भर कर रहे हैं। जाहिर है कि ये निर्देश और इतना बड़ा उधार देने की जिम्मेदारी मंत्री के अलावा और किसी और पर नहीं जा सकती। घबराए हुए मुरली देवड़ा ने अपने युवा राज्य मंत्री जितिन प्रसाद को सारी सरकारी तेल कंपनियों के बोर्ड के काम काज की जांच करने के लिए अधिकृत कर दिया। इन कंपनियों के बोर्ड में ज्यादातर सरकारी अधिकारी होते हैं जिनकी जिम्मेदारी होती है कि वे कंपनी के हितों की रक्षा करें और दैनिक गतिविधियों की जानकारी लगातार मंत्रालय को देते रहें।
जितिन प्रसाद सीधे प्रधानमंत्री मार्गदर्शन में काम कर रहे हैं। उन्हांेने सभी बोर्ड बैठकों के विवरण मांगे हैं और यह साफ कर दिया है कि कंपनियों की स्वायत्ता पर कोई रोक नहीं लगा रहे मगर वे संसद के प्रति जवाबदेह हैं और इसलिए सिर्फ अखबारों पर छपी खबरों पर भरोसा नहीं कर सकते। उन्हांेने कहा कि सूचना के अधिकार के तहत भी कोई भी बोर्ड मीटिंग के विवरण मांग सकता हैं।
4 मार्च 2010 को किंग फिशर का पुराना उधार 602 करोड़ रुपए था जैसा कि पहले बताया एचपीसीएल के 2008-09 के 575 करोड़ रुपए के लाभ की तुलना मंे भी ज्यादा था। किंग फिशर ने अब तक सिर्फ 63 करोड़ रुपए वापस किए गए हैं। पेट्रोलियम मंत्रालय एचपीसीएल के प्रबंधन के खिलाफ जांच शुरू करने जा रहा हैं। एचपीसीएल ने विजय माल्या से बाकी रकम फौरन जमा कराने के लिए अभी तक नहीं कहा है।
तेल माफिया के डॉन है मुरली देवड़ा
आलोक तोमर
मुरली देवड़ा भारत के पेट्रोलियम मंत्री तो हैं ही, खुद भी छोटे मोटे व्यापारी है। इसलिए उन्हें मालूम है कि धंधा कैसे किया जाता है। उन्हें यह भी मालूम है कि धंधे मंे डंडी कैसे मारी जाती है और पकड़ लिए जाने पर चोरी कैसे छिपाई जाती है। आज हम आपको बता रहे हैं एक चोरी की कहानी जिसे पकड़...ने वाले को मुरली देवड़ा में इतना सताया कि लगभग मार ही डाला। वैसे बाकायदा मारना अगर उनके वश मंे होता तो वह भी कर डालते।
हमे मुरली देवड़ा से कुछ सवाल पूछने है लेकिन उसके पहले आपको अशोक सिंह नाम के हिंदुस्तान पेट्रोलियम के एक बड़े अफसर की कहानी बतानी है जिससे देवड़ा की बेईमानियां बर्दाश्त नहीं हुई तो उसे फर्जी जांच कर के बर्खास्त कर दिया गया। आपको याद होगा कि मुरली देवड़ा ने अपने तत्कालीन पेट्रोलियम सचिव एम एस श्रीनिवासन को आदेश दे कर बगैर सार्वजनिक टेंडर बुलाए पेट्रोल में मिलावट का पता लगाने वाले मार्कर सिस्टम को दो सौ करोड़ रुपए मंे खरीदा था।
यह कंपनी इंग्लैंड ऑथेंट्रिक्स लिमिटेड थी। इसकी शिकायत की गई और सर्वोच्च न्यायालय से ले कर केंद्रीय सतर्कता आयोग के अलावा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी तक से की गई। शिकायत इतनी बड़ी थी कि उसके कुछ हिस्से अखबारों में भी छपे और इन्हीं को आधार बना कर मुरली देवड़ा को मौका मिल गया या अशोक सिंह को बर्खास्त कर दिया गया। बाद में अदालत के हस्तक्षेप से उन्हें वापस एचपीसीएल की ही एक कंपनी मंे ऐसे बैठा दिया गया जिसे सरकारी भाषा में बर्फ मंे लगाना कहते हैं।
अशोक सिंह का कसूर यह था कि मार्कर सिस्टम जो दो अरब रुपए में खरीदा गया था और जिसका इस्तेमाल करने का सरकारी आदेश देवड़ा के सरकारी बंगले पर हुई एक नाटकीय बैठक में सारी तेल कंपनियों को भेज दिया गया था वह अपने आप में काम नहीं कर रहा था। इसके नतीजे उल्टे सीधे आ रहे थे। अशोक सिंह ने एक अधिकारी और एक नागरिक के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मंत्रालय के संयुक्त सचिव, सीबीआई और सीबीसी के अलावा अदालत में शपथ पत्र दिया। शपथ पत्र वह दस्तावेज होता है जिसमें दस्तावेज देने वाला कसम खाता है कि वह जो कह रहा है उसके तथ्यों की जिम्मेदारी उसी की हैं।
मुरली देवड़ा की पेट्रोलियम मंत्रालय में धांधलियों के तमाम सबूत हैं। जब पूरी दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थों के दाम घट रहे थे तो उन्होंने भारत में पेट्रोल और तेल के दाम बढ़ा दिए। हाल मंे ही सीएनजी और पाईप से आने वाली घरेलू गैस के दाम बढ़ाए गए। अदालत के आदेश के खिलाफ किंग फिशर के विजय माल्या को छह करोड़ से ज्यादा देने के लिए देवड़ा के पास पैसे हैं लेकिन वे पैसे आम जनता से वसूले जाते हैं। कई कंपनियों ने मुरली देवड़ा के निजी आदेशों पर तेल खुदाई और दूसरे टेंडर देने का आरोप लगाया है। दरअसल मुरली देवड़ा जवाब देते देते थक जाएंगे मगर हमारे सवाल खत्म नहीं होंगे।
दिल्ली पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत देवड़ा, श्रीनिवासन और कई नामी और गुमनाम अधिकारियों की गिरफ्तारी भी हो सकती है मगर मुरली देवड़ा को सीधे भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 में फंसेेंगे और सीबीआई सीधे उनसे पूछताछ कर सकती है। मगर सीबीआई सरकार चलाती है और उसी सरकार में मुरली देवड़ा शामिल है वरना अनिवार्य वस्तु कानून 1955 में उनकी गिरफ्तारी के पूरे प्रावधान मौजूद हैं। उन्होंने देश को ठगा है, सरकार को ठगा है, हमको और आपको ठगा है।
19 अप्रैल 2006 को मार्कर सिस्टम के लिए मुंबई मंे उनके निजी बंगले पर बैठक क्यों की गई? मामला सरकारी था और मंत्रालय में नहीं निपटाया जा सकता था? ऑथेंट्रिक्स लिमिटेड के एजेंट एसजीएस इंडिया के अधिकारी बैठक में मौजूद थे और बाद में उनमें से कई पर पेट्रोल पंपों पर जा जा कर फंसा देने की धमकी दे कर बाकायदा वसूली की गई। मुरली देवड़ा क्या देश मंे तेल माफिया चला रहे हैं?
आलोक तोमर
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