Saturday, March 19, 2011


Alok Tomar सद्दाम हुसैन से रिलायंस ने कितना कमाया?

आलोक तोमर
यह शायद रिलायंस के गोरखधंधों में सबसे बड़ा खुलासा हैं। कम लोग जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के ऑयल फॉर फूड के मामले मंे सद्दाम हुसैन से तेल लेने वाले घोटाले जिसमें तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह को कांग्रेस से निकाल दिया गया था, में रिलायंस भी शामिल है। नटवर सिंह पर जितन...ा तेल लेने का आरोप लगा हैं उससे लगभग सात गुना ज्यादा तेल अंबानियों को मिला।
वोल्कर कमेटी की रिपोर्ट में सद्दाम हुसैन द्वारा दिए गए इस तेल के दाम में नटवर सिंह, उनके बेटे जगत सिंह और एक रिश्तेदार अंदलीव सहगल के नाम थे और कई भारतीय कंपनियों को लाभ मिलने की बात भी कही गई थी। इस घोटाले में नटवर सिंह ने कहा था कि वे कांग्रेस के लिए पैसा जुटा रहे थे और उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
मगर इस मामले की जांच के लिए जब कमेटी बनाई गई और भूतपूर्व न्यायमूर्ति आर एस पाठक को उसका अध्यक्ष बनाया गया तो उन्हें जांच के लिए सिर्फ नटवर सिंह और उनके सहयोगियों के कारनामांे की पड़ताल करने का आदेश दिया गया। सरकार में अपने शानदार संपर्कों की वजह से अंबानी का नाम भी इस जांच में नहीं आया। एक अशद खान भी अभियुक्तों में शामिल थे जो इंदिरा गांधी के जमाने में बहुत ताकतवर रहे मोहम्मद युनूस के रिश्तेदार है।
मगर असली फायदा रिलायंस पेट्रोलियम इंडस्ट्रीज को पहुंचा जिस पर आज तक किसी ने उंगली नहीं उठाई। कहानी कुछ यो हैं कि सद्दाम हुसैन ने कुवैत में जब अपनी सेना भेज दी थी और फरवरी 1991 में इराक के साथ युद्व विराम हो गया था फिर भी इराक को संयुक्त राष्ट्र ने सजा देने के लिए उस पर प्रतिबंध लगा दिए मगर बाद में 1995 में कहा गया कि मानवीय आधार पर इराकी लोगों को खाने पीने का सामान दिया जाएगा और इसके बदले मंे सद्दाम हुसेैन देने वालों को पेट्रोलियम मंे भुगतान करेंगे। जाहिर है कि तब तक अमेरिका सद्दाम के साथ था और बाद में इसी अमेरिका की पहल पर सद्दाम को फांसी पर चढ़ाया गया।
संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव नंबर 986 मंे कहा गया था कि संयुक्त राष्ट्र में रजिस्टर्ड देशों और कंपनियों को सद्दाम हुसैन तेल देंगे और इसकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा संयुक्त राष्ट्र को भोजन और दवाईयो की कीमत के तौर पर दिया जाएगा। 1996 से सद्दाम की सत्ता पलटने तक यानी 2003 तक यह चलता रहा। इसमें संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने भी खूब कमाया। सद्दाम मजबूरी मंे बाजार भाव से कम पर तेल बेचने पर मजबूर थे। यही पर जम कर भ्रष्टाचार हुआ। जिसे मौका मिला उसने कमाया। अमेरिका ने पॉल वोल्कर के नेतृत्व मंे एक कमेटी बनाई जिसमंे बगैर संधि के लाभ उठाने वालों की लंबी सूची थी जिन्होंने रिश्वत दे कर तेल लिया था। कश्मीर के नेता भीम सिंह का नाम भी इसमंे था मगर चंूकि उन्होंने एक बूंद भी तेल उठाया नहीं था, उन्हें दोष मुक्त कर दिया गया। रिपोर्ट मंे कहा गया है कि नटवर सिंह ने कांग्रेस की ओर से लगभग तीस लाख बैरल तेल ले कर बेचा जबकि रिलायंस ने सोलह लाख बैरल तेल सद्दाम हुसैन से सीधे प्राप्त किया। कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए साढ़े तीस लाख डॉलर की रिश्वत भी दी गई। यह दुनिया मुट्ठी मंे करने का मामला है। पाठक कमेटी की जांच सिर्फ नटवर सिंह और कांग्रेस पार्टी तक सीमित थी जबकि सबसे ज्यादा कमाई करने वाला रिलायंस समूह जांच के दायरे से ही बाहर था। अंदलीव सहगल ने सत्तर लाख रुपए कमीशन मंे लिए थे इसलिए नटवर सिंह फंस गए क्योंकि उन्होंने ही अंदलीव और जगत सिंह को सद्दाम हुसैन से परिचय के लिए पत्र दिए थे। नटवर सिंह के निजी बैंक खाते में एक भी पैसा नहीं पहुंचा मगर उन पर इल्जाम लगा दिया गया।
रिलायंस के सांसदों पर शायद इतने उपकार है कि पूरी बहस में रिलायंस का नाम कहीं नहीं आया। मार्क्सवादी पार्टी के सीताराम येचुरी ने जरूर संसद मंे रिलायंस की जांच करने की मांग की मगर प्रकाश करात ने तो इसी मुद्दे पर बुलाई प्रेस कांफ्रेंस में रिलायंस का नाम तक नहीं लिया। तब तक मुकेश अंबानी उनसे मिल चुके थे। संसद के रिकॉर्ड बताते हैं कि तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी रिलायंस का कोई जिक्र नहीं किया गया जबकि वे अच्छे खासे वकील हैं। कपिल सिब्बल जैसे बड़े वकील भी संसद में थे और उन्होंने तो बाकायदा रिलायंस को बचाया। रिलायंस को बचाने वालों में सभी दलों के लोग थे।
रिलायंस की दादागीरी ऐसी रही है कि पन्ना मुक्ता तेल क्षेत्र रिलायंस को राजीव गांधी की सरकार के दौरान तब दे दिया गया था जब सतीश शर्मा पेट्रोलियम मंत्री थे। सरकार की अपनी ओएनजीसी को बाकायदा दस्तावेजों में निकम्मा साबित कर के रिलायंस को काबिल बताया गया और रॉयल्टी के भुगतान में भी उन्हें रियायत दी गई। तेल के भाव कितने भी बढ़ जाए, रिलायंस को पन्ना मुक्ता से निकलने वाले तेल और गैस के लिए एक तय और कभी न बदलने वाली कीमत देनी थी।
आंकड़े बताते हैं कि अब तक रिलायंस को देश की कीमत पर करोड़ों डॉलर का लाभ पहुंचाया जा चुका है और अभी जितनी गैस और तेल बाकी है उससे दस अरब डॉलर का और लाभ होने वाला है। तत्कालीन महा लेखा नियंत्रक ने इस सौदे पर सवाल उठाए थे और सतीश शर्मा के खिलाफ तो अपार दौलत होने के इल्जाम में सीबीआई ने बाकायदा मामला दर्ज किया था।

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